यकृत से संबंधित बीमारियों की जानकारी एवं उनका घरेलू विधि द्वारा उपचार । Knowledge of diseases related to liver and their home remedies ।
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यकृत से संबंधित बीमारियों की जानकारी एवं उनका घरेलू विधि द्वारा उपचार
यकृत का बढ़ना (ENLARGEMENT-OF-LIVER)
रोग परिचय, लक्षण एवं कारण :- यकृत के प्रदाह के बाद उसके परिणाम स्वरूप यकृत में बार-बार रक्त-संचार होते रहने के कारण यकृत का पुराना प्रदाह होकर उसकी वृद्धि हो जाती है। अधिक मसालेदार पदार्थों के खाने से, अति मद्यपान सेवन से, अति उष्णता से, अधिक ऐश-ओ-आराम से जीवन बिताने से, पित्त की अधिकता हो जाने से यह रोग हो जाता है।
आकस्मिक दुर्घटनाएं एवं उनका घरेलू उपचार.................
इस रोग में पेट में दाँयी तरफ भारी-भारी सा लगता है तथा रह-रह कर तीर चुभने जैसा दर्द होता है, भूख की कमी, अफारा, बदहजमी, आँखें पीली हो जाना, जीभ पर लेप सा चढ़ा होना तथा मुँह का स्वाद बिगड़ जाना आदि लक्षण होते हैं। रोगी की आंतें अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाती हैं, फल-स्वरूप जिगर के रोगी को कब्ज अवश्य बना रहता है। कभी-कभी पतले दस्त आते हैं तथा रोगी को कभी-कभी बुखार भी हो जाता है।
रोगी को लिटाकर हाथ की ऊंगलियों से सबसे नीचे वाली पसली के बराबर जिगर को दबाने से यदि कड़ापन मालूम हो तथा रोगी को वहाँ दर्द महसूस हो तो आप निश्चित समझ लें कि रोगी का जिगर बढ़ा हुआ है। यदि यकृत नीचे की ओर बढ़ता है तो पंजरे की हड्डी के नीचे हाथ से दवाने पर पता लग जाता है। यदि यकृत ऊपर की ओर बढ़ता है तो कन्धे की हड्डी में दर्द होता है खाँसी आने लगती है तथा साँस लेने में तकलीफ होती है। बच्चों में भी दाहिनी पर्शुकाओं के नीचे बढ़ा हुआ यकृत वहाँ स्पर्श कर दबाने से स्पष्ट प्रतीत होता है तथा ऐसा करते ही बच्चा दर्द से रोने भी लगता है।
बच्चे को कभी वमन, कभी पतले दस्त, कब्ज तथा कभी आन्त्र में कृमि होने से पाखाने में कृमि निकलते हैं। बच्चा हमेशा चिड़चिड़ा रहता है। आमाशय आन्त्र ही नहीं, वरन समस्त शरीर में जलन होने के कारण बच्चा ठन्डे फर्श पर लोट-पोट करता रहता है। हल्का-हल्का ज्वर रहता है, अच्छी नींद नहीं आती है, सिर दर्द, जीभ मलीन, रक्त अल्पता, मन्दाग्नि, मुखाकृति पर हल्का पीला या सफेद रंग दीख पड़ता है। मूत्र थोड़ा लाल तथा पीला सा मिला हुआ आता है तथा किसी-किसी बच्चे को मूत्र थोड़ी ही देर में जम सा जाता है। बच्चे के दाहिने स्कन्ध में पीड़ा होती है, जिसे बड़े बच्चे तो बतला देते हैं किन्तु न बोल सकने वाले बच्चों के स्कन्ध को छूने से दर्द होने पर वह रोने लगता है। मुँह का स्वाद साबुन खाये हुए जैसा लगता है। बच्चों की पलकों एवं मुँह पर सूजन आ जाती है, अफारा, भूख की कमी के कारण दूध भी नहीं पी पाता है। फलस्वरूप वह प्रतिदिन दुर्बल एवं क्षीण तथा कृश होता चला जाता है। इस यकृत शोथ (HEPALITIS) भी कहते है।
नोट- इस रोग का ठीक प्रकार से यदि इलाज न किया गया तो यकृद्धाल्युदर (लीवर सिरोसिस) जिगर में फोड़ा और कामला आदि रोग होने का डर रहता है।
उपचार- रोग के मूल कारणों को दूर कर, नियमित आहार- -विहार का और स्वास्थ्य के नियमों का कठोरता से पालन करने का निर्देश दें। कब्ज न होने दें। मल त्यागन प्रतिदिन होना चाहिए, यदि ऐसा न हो तो मृदु विरेचन दें। दीपन, पाचन, रोचक आदि और यकृत विकार नाशक औषधियाँ दें। खुली हवा में टहलें। खाने में दूध दे सकते हैं। जिन्हें दूध हज्म नहीं होता हो, उन्हें अरारोट, साबूदाना, बार्ली आदि दूध में दें। पके फल तथा हरी शाक सब्जी दें। शुद्ध जल ज्यादा पिलायें। कच्चे पपीते की तरकारी और पका पपीता दें। नियमित पपीते का दूध बताशे के साथ देना उपयोगी है। गरिष्ठ भोजन, भुनी-तली चीजें, गर्म खीर, मांस-मछली, दिन में अधिक सोना, परिश्रम करना, रात्रि-जागरण, नशीले पदार्थों का सेवन आदि अपथ्य है। पुराने रोग में प्रतिदिन व्यायाम तथा स्नान करायें।
नोट :- याद रखे कि यकृत वृद्धि में दी जाने वाली औषधियाँ प्लीहा वृद्धि (SPLEEN) में भी लाभ पहुँचाती है।
यकृत-प्लीहा वृद्धि नाशक घरेलू उपयोग
- ताप्यादि लौह 30 से 120 मि.ग्रा. बच्चों को सुबह शाम दूध से खिलायें। यकृत वृद्धि में लाभप्रद है। ताजा गोमूत्र जो कुमारी बाछी (बछिया) का हो आयु के अनुसार बच्चों को 5 से 15 बूंद गौ दुग्ध से सुबह शाम पिलायें। यकृत वृद्धि नाशक है।
- कच्ची पपई (पपीता), अन्ड खरबूजा) का दूध 2 चम्मच तथा इतना ही शहद दोनों को मिलाकर आपस में खूब फेटें, तत्पश्चात् इसमें उबाला हुआ गरम जल दुगुनी मात्रा में धीरे-धीरे मिलायें और ठन्डा हो जाने पर रोगी को पिलायें। इस योग का लगातार सात दिन प्रयोग करने से प्लीहा वृद्धि में लाभ होता है।
- करेला के रस में थोड़ा सा नमक व राई का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है।
- कच्चे पपीते का ताजा दूध 5 बूंद तथा एक पका केला दोनों को फेंटकर भोजन के बाद दोनों समय सेवन करने से यकृत व प्लीहा वृद्धि में लाभ होता है।
- अनार के छाया-शुष्क पत्ते 5 भाग तथा नवसादर 1 भाग दोनों को महीन पीस लें। इसे 3-3 ग्राम सुबह-शाम ताजे जल से सेवन कराने से प्लीहा वृद्धि में लाभ होता है।
- करील की कोपलों का चूर्ण 10 ग्राम तथा काली मिरच 6 ग्राम दोनों को एकत्र कर खरल करें, तब 4 मात्राएं बनायें, इसकी 1-1 मात्रा जल के साथ लेने (प्रात:सायं) कुछ दिनों में ही प्लीहा वृद्धि में लाभ होता है।
- तम्बाकू के पत्तों को नीबू के रस में पीसकर लेप करने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है।
- पलाश के पत्तों पर तेल चुपड़कर प्लीहा पर बाँधने से उसकी वृद्धि दूर हो जाती है।
- प्याज को आग में पकाकर उसे रात भर ओस में रखकर प्रात:काल प्रतिदिन खिलाने से प्लीहा वृद्धि में शीघ्र लाभ होता है।
- भांगरे के स्वरस में थोड़ा सा अजवायन चूर्ण मिलाकर पिलाने से यकृत वृद्धि में लाभ होता है।
- यकृत तथा प्लीहा की सूजन पर मकोय या पुनर्नवा का स्वरस गरम करके लेप करने से यकृत तथा प्लीहा का शोथ नष्ट होता है।
- शंख भस्म 2 ग्राम रोगी को फकवाकर ऊपर से मट्ठा पिलायें। कुछ दिन के प्रयोग से प्लीहा नष्ट हो जायेगा।
कामला अथवा पीलिया (JAUNDICE)
रोग परिचय, लक्षण एवं कारण:- इस रोग में शरीर की चमड़ी का रंग पीला पड़ जाता है। रोगी की आँखें तथा हाथ के नाखून आदि तक पीले पड़ जाते हैं। यह रोग यकृत (जिगर) की खराबी से होता है। जिगर की नली में जब पथरी अटक जाती है या किसी बीमारी के कारण पित्त की नली का रास्ता छोटा हो जाता है तो पित्त आँतों में नहीं पहुँचकर सीधा खून में मिलने लगता है। खून में इसके मिलने से ही शरीर में पीलापन छा जाया करता है। वैसे आमतौर पर पौष्टिक भोजन न मिलना, पाचन क्रिया की गड़बड़ी, बहुत ज्यादा रजः स्राव या वीर्य नाश करना, बहुत दिनों तक खून जाने (गिरने) वाला रोग, बहुत दिनों तक मलेरिया ज्वर रहना, खुली हवा तथा सूर्य के प्रकाश की कमी आदि भी इस रोग की उत्पत्ति में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
इस रोग में रोगी की आँखें, सारा शरीर नाखून और मूत्र पीला हो जाता है। रोगी के मुँह का स्वाद कड़वा, जीभ पर मैल का लेप चढ़ जाना, भूख कम लगना आदि प्रधान लक्षण हो जाते हैं। इस कारण से नाड़ी क्षीण, शरीर में खुजली, आलस्य, अनिद्रा, तथा दुर्बलता हो जाती है। नाड़ी की गति कभी-कभी 40-50 तक प्रति मिनट हो जाती है। इस रोग का यदि समय पर इलाज न किया गया तो शोथ होकर त्वचा तथा श्लैष्मिक झिल्ली से रक्तस्राव होने लगता है।
उपचार- कारण के अनुसार चिकित्सा करें। कब्ज न रहने दें। आमाशय प्रक्षालन और बस्ति कर्म (एनीमा) उपयोगी है। खाने में कच्चे गूलर का रसदार शाक, गरम दूध, साबू-दाना, अनार, अरारोट, मौसम्मी, सन्तरा का रस दें। छेने का जल दें। सुपाच्य और लघु भोजन दें। यदि ज्वर हो तो साबूदाना, बार्ली तथा अरारोट दें, बुखार न हो तो पुराने चावल का भात दें। मछली, खटाई, मिठाई, दूध घी, तेल, उड़द की दाल, बेसन की चीजें एवं मैदा की वस्तुएं न दें।
कामला या पीलिया नाशक कुछ घरेलू उपयोग
- ईख के गन्ने के टुकड़े करके रात्रि के समय घर के ऊपर छत पर खुले स्थान पर किसी बर्तन में रख दें। प्रात:काल नित्यक्रिया से फारिग हो, शुद्ध होकर इन्हें चूसने से कामला में बहुत लाभ होता है।
- कसौंदी के 2-4 पत्तों को 2 काली मरिच के दानों के साथ पीस छानकर प्रातः सायं पिलाना हितकारी है।
- छाया-शुष्क अनार के पत्तों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में गाय के तक्र के साथ देने से कामला में लाभ होता है।
- अनन्नास के पके फल के 10 ग्राम रस में हल्दी का चूर्ण 2 ग्राम तथा मिश्री 3 ग्राम मिलाकर सेवन कराने से कामला में लाभ होता है।
- आँवला चूर्ण के साथ थोड़ी सी लौह-भस्म मिलाकर सेवन कराने से कामला ठीक हो जाता है।
- एक केले की फली पर भीगा हुआ चूना लगाकर रात्रि को बाहर ओस में रख दें। इसे प्रातः काल छीलकर रोगी को खिलायें। कामला में हितकारी है।
- ग्वारपाठे का रस पिलाते रहने से पित्त-नलिका का अवरोध दूर हो जाता है। कामला में हितकारी है।
- गर्भवती को होने वाली कामला की प्रारम्भिक अवस्था में एरण्ड पत्रों का रस 10 ग्राम दूध के साथ मिलाकर प्रति दिन प्रात: 5 दिन तक पिलाने से कामला में लाभ होता है।
- बेल के पत्तों को कूट-पीसकर कपड़े में रखकर निचोड़ें (रस निकालें) फिर इसमें 4-5 काली मिर्ची का चूर्ण मिलाकर पिलायें। कामला नाशक है।
- पतली मूली के 40 ग्राम रस में 10 ग्राम शक्कर मिलाकर दिन में 3 बार पिलाना कामला रोग में लाभप्रद है।
- उत्तम फिटकरी लेकर फूला बनायें। फिर इसको पीसकर प्रथम दिन 1, चुटकी दूसरे दिन 2 चुटकी तथा तीसरे दिन 3 चुटकी तत्पश्चात 4 दिन और 3 चुटकी देकर ऊपर से गाय का दही पिलावें। इस प्रकार मात्र सात दिन में कामला नष्ट हो जाता है।
- 6 ग्राम हल्दी को मट्ठे में मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करायें। भोजन में दही-भात खिलवायें। मात्र 4-5 दिन में कामला में लाभ हो जाता है।
- सफेद चन्दन 5 ग्राम, आँवा हल्दी (पीसी हुई)7 ग्राम लें। दोनों को शहद में मिलाकर प्रातः सायं मात्र सात दिन चटायें। कामला में लाभप्रद है।
जलंधर, जलोदर (ASCITES)
जलोदर की घरेलू चिकित्सा
- अजवायन को बछड़े के मूत्र में भिगोकर शुष्क कर लें। फिर जलोदर के रोगी को यह थोड़ा-थोड़ा सेवन करायें। कुछ दिनों में जलोदर में लाभ हो जाता है।
- करेले के पत्तों का रस उचित मात्रा में कुछ दिनों तक जलोदर के रोगी को पिलाने से लाभ होता है। इसके स्वरस पान से पेशाब की मात्रा बढ़ती है, 1-2 बार शौच हो जाता है। फलस्वरूप जलीयांश कम होने लगता है।
- करौदें के पत्र स्वरस को प्रथम दिन 10 ग्राम तत्पश्चात प्रत्येक दिन 10 ग्राम बढ़ाते हुए 100 ग्राम तक दें। तत्पश्चात् 10-10 ग्राम की प्रत्येक दिन मात्रा घटाते हुए प्रयोग बन्द कर दें, इस प्रयोग से जलोदर में लाभ होता है।
- बेलपत्र का ताजा स्वरस 25 से 50 ग्राम तक में छोटी पीपल का चूर्ण आधा ग्राम तक मिलाकर नित्य प्रातः सायं कुछ दिनों तक सेवन करने से जलोदर में लाभ होता है।
- इन्द्रायण की जड़ 6 ग्राम प्रात: सायं पानी में घोटकर पिलाने से सब दोष दस्तों द्वारा निकलकर जलन्धर रोग मिट जाता है।
- ताजे करेले को कूटकर पानी निकालें। यह पानी प्रतिदिन 50 ग्राम रोगी को नित्य पिलायें। जलोदर में लाभप्रद है।
- एक बड़ा बैंगन. लेकर उसमें छेद करके डन्डा नौशादर भरके ओस में रख दें, प्रातः इसे निचोड़ कर रस निकालें इसकी 4-5 बूंदे बताशे में डालकर रोगी को खिलायें। इससे जलोदर के रोगी को एक मटका पेशाब होगा। एक माह तक सेवन करें। जलोदर एवं तिल्ली में अतिशय लाभकारी योग है।
यकृत प्रदाह (HEPATITIS)
यकृत विद्रधि (HEPATIC ABSCESS)
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