Posts

Showing posts from February, 2021

पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND), लिंग की चमड़ी उलट जाना, लिंग मुण्ड का न खुलना, (PHIMOSIS), जन्मजात निरुद्धता (CONGENITAL PHIMOSIS)

Image
  पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND) रोग परिचय कारण एवं लक्षण:- इसमें पौरुषग्रन्थि बगैर सूजन के बढ़ जाती है। यह रोग बिना कीटाणुओं के आक्रमण से हो जाता है। यही कारण है कि इसमें दर्द और ज्वर आदि नहीं होता है। प्राय: यह रोग 50 वर्ष की आयु के बाद ही होता है। प्रारम्भ में मूत्र में कुछ कठिनाई और रुकावट सी आती है, बाद में मूत्र बिना कष्ट के, सामान्य रूप से आने लगता है। रोग बढ़ जाने पर मूत्र बार-बार आता है, मूत्राशय मूत्र सें पूरा खाली नहीं होता, कुछ न कुछ मूत्र मूत्राशय में रुका ही रह जाता है। मूत्र करते समय रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे कोई चीज मूत्र को बाहर निकलने से रोक रही है। इस रोग के मुख्य कारण अत्यधिक मैथुन तथा अत्यधिक सुरापान है। यह रोग प्रायः तर मौसम (तर जलवायु) में रहने वालों को अधिक हुआ करता है। चिकित्सा:- इस रोग में खट्टे, ठन्डे और तर भोजनों और तरकारियों तथा देर से पचने वाले भोजनों यथा-दही, मट्टा, गोभी, बैंगन, अरबी (घुइयाँ) आदि का पूर्णतयः निषेध है। रोगी को मैथुन न करने की हिदायत दें। 'सोये के तैल' की मालिश करें। यदि औषधियों से रोगी ठीक न हो

हिचकी एवं सिरदर्द का घरेलू उपचार हिन्दी में। Home remedies for hiccups and headaches in Hindi.

Image
हिचकी एवं सिरदर्द का घरेलू उपचार हिन्दी में। Home remedies for hiccups and headaches in Hindi. हिचकी, हिक्का (HICCUPS) रोग परिचय, लक्षण एवं कारण:- हिचकी या हिक्का अपने आप स्वयं में कोई रोग नहीं है, बल्कि यह शरीर में जड़ें जमाने वाली अन्य बीमारियों का भयानक उपसर्ग है। वक्षोदर मध्यस्थ पेशी (डायफ्राम, वक्ष और उदर के बीच वाली पेशी) तथा गर्दन की क्षण भर के लिए अकड़न के साथ सांस लेने में जो कर्कश आवाज होती है, उसका ही हिचकी या हिक्का नाम है। हिचकी आना ही इस रोग की सबसे बड़ी तथा विश्वसनीय पहिचान है। लक्षण-ये कंभी-कभी एन्फ्लूएन्जा, फेफड़ों के रोगों तथा मस्तिष्कीय विकार के कारण पैदा हो जाती है। हैजा, टायफायड, उदररोग, मस्तिष्क की रसौली तथा यूरीमिया की अन्तिम अवस्था आदि भयानक रोगों में उपसर्ग के रूप हिचकी आया करती है। यदि हिचकियाँ रोगी को कुछ समय तक लगातार आती रहें तो उसके प्राण संकट में पड़ जाते हैं। हकीकत तो यह है कि इससे शीघ्र ही नाड़ी छूटकर रोगी के प्राण-पखेरू उड़ जाते हैं।           बहुत अधिक हँसने, अधिक खाना खा लेने, तेज-चटपटे मसालेदार भोजन करने या पेट की मामूली सी गड़बड़ के कारण जो ह

यकृत से संबंधित बीमारियों की जानकारी एवं उनका घरेलू विधि द्वारा उपचार । Knowledge of diseases related to liver and their home remedies ।

Image
यकृत से संबंधित बीमारियों की जानकारी एवं उनका घरेलू विधि द्वारा उपचार यकृत का बढ़ना (ENLARGEMENT-OF-LIVER) रोग परिचय, लक्षण एवं कारण :- यकृत के प्रदाह के बाद उसके परिणाम स्वरूप यकृत में बार-बार रक्त-संचार होते रहने के कारण यकृत का पुराना प्रदाह होकर उसकी वृद्धि हो जाती है। अधिक मसालेदार पदार्थों के खाने से, अति मद्यपान सेवन से, अति उष्णता से, अधिक ऐश-ओ-आराम से जीवन बिताने से, पित्त की अधिकता हो जाने से यह रोग हो जाता है। आकस्मिक दुर्घटनाएं एवं उनका घरेलू उपचार.................        इस रोग में पेट में दाँयी तरफ भारी-भारी सा लगता है तथा रह-रह कर तीर चुभने जैसा दर्द होता है, भूख की कमी, अफारा, बदहजमी, आँखें पीली हो जाना, जीभ पर लेप सा चढ़ा होना तथा मुँह का स्वाद बिगड़ जाना आदि लक्षण होते हैं। रोगी की आंतें अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाती हैं, फल-स्वरूप जिगर के रोगी को कब्ज अवश्य बना रहता है। कभी-कभी पतले दस्त आते हैं तथा रोगी को कभी-कभी बुखार भी हो जाता है।        रोगी को लिटाकर हाथ की ऊंगलियों से सबसे नीचे वाली पसली के बराबर जिगर को दबाने से यदि कड़ापन मालूम हो तथा रोगी को वहाँ

आकस्मिक दुर्घटनाएं (Accidents) एवं उनके उपचार।

Image
 आकस्मिक दुर्घटनाएं (Accidents) एवं उनके उपचार अस्थि भंग (FRACTURE) अस्थि भंग के स्थान पर एवं उसके आस-पास के उससे प्रभावित क्षेत्र में असहनीय दर्द होता है, जो उस भाग के हिलने डुलने या हिलाने डुलाने पर दर्द और भी ज्यादा हो जाता है। उस जगह पर बहुत मामूली दबाव भी रोगी को असहनीय दर्द देता है। और सूजन भी आ जाती है। अस्थि भंग वाले स्थान की शक्ति नष्ट हो जाती है। रोगी उस भाग को हिलाने-डुलाने में असमर्थ हो जाता है तथा उस स्थान की आकृति भी बदल जाती है। स्थान भेद से वह स्थान कहीं दबा हुआ और कहीं उठा हुआ दृष्टिगोचर हो सकता है। हड्डी के टुकड़ों का रड़कना भी स्पष्ट रूष से सुना जा सकता है तथा रोगी द्वारा महसूस भी किगा जा सकता है। इसके अतिरिक्त अस्थि भंग वाला भाग शरीर के दूसरे भाग के, उसी भाग से भिन्न और छोटा दिखलायी पड़ता है। यह बात मुख्म रूप से टॉंग एवं हाथ (भुजा) के अस्थि भंग में स्मष्ट रूप से देखी जाती है। उपचार- अस्थि भंग की चिकित्सा में पहले खींचकर अथवा सरका कर हड्डियों को अपनी वास्तविक जगह बैठायें। तदुपरान्त प्लास्टर, स्प्लिन्ट, तार और पेंचों द्वारा उस अंग को तब तक उसी स्थिति में रखना चाहि