पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND), लिंग की चमड़ी उलट जाना, लिंग मुण्ड का न खुलना, (PHIMOSIS), जन्मजात निरुद्धता (CONGENITAL PHIMOSIS)

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  पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND) रोग परिचय कारण एवं लक्षण:- इसमें पौरुषग्रन्थि बगैर सूजन के बढ़ जाती है। यह रोग बिना कीटाणुओं के आक्रमण से हो जाता है। यही कारण है कि इसमें दर्द और ज्वर आदि नहीं होता है। प्राय: यह रोग 50 वर्ष की आयु के बाद ही होता है। प्रारम्भ में मूत्र में कुछ कठिनाई और रुकावट सी आती है, बाद में मूत्र बिना कष्ट के, सामान्य रूप से आने लगता है। रोग बढ़ जाने पर मूत्र बार-बार आता है, मूत्राशय मूत्र सें पूरा खाली नहीं होता, कुछ न कुछ मूत्र मूत्राशय में रुका ही रह जाता है। मूत्र करते समय रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे कोई चीज मूत्र को बाहर निकलने से रोक रही है। इस रोग के मुख्य कारण अत्यधिक मैथुन तथा अत्यधिक सुरापान है। यह रोग प्रायः तर मौसम (तर जलवायु) में रहने वालों को अधिक हुआ करता है। चिकित्सा:- इस रोग में खट्टे, ठन्डे और तर भोजनों और तरकारियों तथा देर से पचने वाले भोजनों यथा-दही, मट्टा, गोभी, बैंगन, अरबी (घुइयाँ) आदि का पूर्णतयः निषेध है। रोगी को मैथुन न करने की हिदायत दें। 'सोये के तैल' की मालिश करें। यदि औषधियों से रोगी ठीक न हो

शरीर के ये 5 अंग अनमोल हैं, इनकी हिफाजत कीजिए

हार्ट, ब्रेन, लंग्स, किडनी, और लीवर

मानव का शरीर भी कुदरत की अनोखी कारीगरी की एक उत्तम मिसाल है। हमारे विभिन्न अंग-प्रत्यंग शरीर में एक-दूसरे का सहयोग करते हुए अनेक क्रियाओं का संचालन करते हैं। यूं तो मानव शरीर में अनेक अंग-प्रत्यंग व अवयव हैं जिनका अपना-अपना एक विशेष कार्य है, फिर भी इनमें से 5 प्रमुख अंग सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं- हार्ट (ह्रदय), ब्रेन (मस्तिष्क), लंग्स (फेफड़े), किडनी (गुर्दे), और लीवर (यकृत)। इन पाँचों अंगों का सुचारू रूप से कार्य करना बेहद जरूरी है, अन्यथा जीवन खतरे में पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है।


1. ह्रदय (Heart) 

ह्रदय (Heart) मानव शरीर का चालक है। यह पूरे शरीर में रक्त का संचालन करता है तथा शरीर के प्रत्येक अवयव व अंग को शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाता है। लगातार कार्य करते रहने वाला अंग ह्रदय (Heart) यदि रोग ग्रस्त होता है, तो अन्य कई अंगों, जैसे गुर्दे, फेफड़े आदि की क्रिया भी प्रभावित हो जाती है। ह्रदय (Heart) को हमेशा तंदरुस्त व एक्टिव बनाए रखने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव इस प्रकार हैं- 
  • सुबह में जल्दी उठें और रोजाना कम से कम 20 मिनट तक व्यायाम करें, जिससे ह्रदय (Heart) डिजीज से बचाव होगा। रोजाना सैर, एरोबिक्स, डांस आदि करने से भी ह्रदय (Heart) तंदरुस्त होकर ह्रदय (Heart) डिजीज का खतरा कम होता है। इन सभी क्रियाओं से ह्रदय (Heart) को भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन मिलता है, जिससे यह सुचारू रूप से कार्य करता रहता है।
  • रोजाना रात में भरपूर नींद लें। रात में 6 से 8 घंटे नींद लेने से शरीर के सभी अंग सही ढंग से कार्य करते हैं। भरपूर नींद लेने से शरीर के अवयव पुनः चार्ज होकर अपना कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
  • हमेशा तनावमुक्त रहें। ऐसा पाया गया है कि तनाव से शरीर में कई प्रकार के हानिकारक हार्मोंस निकलते हैं, जो ह्रदय (Heart) की धमनियों को ब्लाॅक करके ह्रदय (Heart) डिजीज पैदा करते हैं। इसलिए खुश रहें। तनावमुक्त रहना ह्रदय (Heart) की सेहत के लिए जरूरी है।
  • हल्का व आसानी से पच जाने वाला भोजन लेने से ह्रदय (Heart) तंदरुस्त बना रहता है। जो लोग अधिक वसा, घी तेल मसाले आदि का भोजन में इस्तेमाल करते हैं, उनमें मोटापा व ह्रदय (Heart) डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। तीन मुख्य भोजन में से रात का भोजन कम मात्रा में लेना चाहिए। रात के भोजन व सोने के समय में लगभग दो घंटे का अंतराल जरूर होना चाहिए।
  • फल-सब्जियों व सलाद का सेवन करें। फल-सब्जियों का सेवन करने से शरीर को विभिन्न विटामिंस व मिनिरल्स मिलते हैं। कच्ची सब्जियों, जैसे खीरा, ककडी आदि और फलों से आँतों की गति बढ़ती है, जिससे आँतों में चिपका हुआ मल शरीर से बाहर निकलता है, साथ ही शरीर से टाॅक्सिंस भी निकलते हैं और विभिन्न रोगों से बचाव होता है।
  • सूरज की किरणों से ऊर्जा ग्रहण करें। रोजाना सुबह में लगभग 15-20 मिनट तक सूरज की किरणों के संपर्क में रहने से विटामिन 'डी' मिलता है, जो ह्रदय (Heart) व अन्य मसल्स की क्रिया को बढ़ाता है।
  • धूम्रपान से बचें। एक्टिव या पैसिव किसी भी तरह का धूम्रपान हो वह शरीर को नुकसान ही पहुंचाता है। बीडी या सिगरेट पीना एक्टिव धूम्रपान कहलाता है, जबकि यदि कोई अन्य व्यक्ति आपके आस-पास धूम्रपान करता हो, तो इसे पैसिव धूम्रपान कहा जाता है। इन दोनों ही अवस्थाओं में ह्रदय (Heart) डिजीज का खतरा बढ़ जाता है।
  • भरपूर मात्रा में पानी पिएँ। हमारे शरीर का 70 प्रतिशत भाग जल है। लगभग 1.5 स 2 लीटर पानी रोजाना पीकर शरीर को हाइड्रेट रखा जा सकता है। यदि शरीर में पानी की मात्रा कम हो, तो ऐसे में टाॅक्सिंस का निष्कासन शरीर से नहीं हो पाता तथा यही कई प्रकार के रोगों के कारण बनते हैं।
  • यदि परिवार में ह्रदय (Heart) डिजीज की हिस्ट्री हो, तो अपने डाॅक्टर की देख रेख में रहें और समय-समय पर कुछ जरूरी टेस्ट, जैसे बी. पी. माॅनीटरिंग, लिपिड प्रोफाइल, ब्लड शुगर आदि कराएं। लापरवाही बिल्कुल भी न बरतें।
  • खान-पान और रहन-सहन में सुधार लाने के साथ-साथ कुछ जड़ी-बूटियाँ व आयुर्वेदिक दवाएं लेने से भी ह्रदय (Heart) डिजीज का रिस्क कम हो जाता है।
  • लहसुन और आंवले का रोजाना प्रयोग करें। अर्जुन की छाल का प्रयोग करने से ह्रदय (Heart) को बल मिलता है, मेथीदाने के प्रयोग से ब्लड प्रेशर पर नियन्त्रण रहता है तथा टमाटर में पाया जाने वाला लाइकोपेन भी ह्रदय (Heart) के लिए उपयोगी है।
  • प्रवाल पिष्टी, प्रवाल पंचामृत रस, ह्रदयार्णव रस आदि दवाओं का प्रयोग भी डाॅक्टर की सलाह से किया जा सकता है।      हृदय का तेज धड़कना और हृदय की जलन.........

2. मस्तिष्क (Brain)

मस्तिष्क (Brain) हमारे शरीर का काॅम्युनिकेशन ऑर्गन है, जिससे हार्ट, लिवर, मसल्स, किडनी आदि की क्रियाओं पर नियन्त्रण किया जाता है। शरीर में होने वाले विभिन्न अनैच्छिक मैकेनिज्म, जैसे हार्ट का आकुंचन-प्रसारण, पलकों का बन्द होना व खुलना, आमाशय की गति का परिचालन आदि मस्तिष्क (Brain) द्वारा ही होता है। हमारी बुद्धि व मन का स्थान भी मस्तिष्क (Brain) ही है। इसी के द्वारा हम बाहरी संवेदनाओं को ग्रहण करके उनके अनुरूप कार्य करते हैं। कुछ हार्मोंस भी मस्तिष्क (Brain) में पड़ी ग्रन्थियों से निकलते हैं, जो शरीर की वृद्धि में सहायक होते हैं। प्रजनन संबंधी अवयव भी मस्तिष्क (Brain) की देख-रेख में कार्यरत होते हैं। अतः मस्तिष्क (Brain) का पूरी तरह एक्टिव रहना व सही ढंग से कार्य करते रहना बहुत जरूरी है। मस्तिष्क (Brain) को हमेशा तंदरुस्त व एक्टिव बनाए रखने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव इस प्रकार हैं-
  • सुबह में सूर्योदय से पहले उठें। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर मस्तिष्क (Brain) की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है। सुबह में मस्तिष्क (Brain) की कोशिकाओं में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है, रक्त संचार भी उत्तम होता है, अतः इस समय यदि ध्यान किया जाए, तो वह अधिक समय के लिए ग्राह्य होता है। यही कारण है कि विद्यार्थियों को सुबह में उठकर पढ़ाई करने की सलाह दी जाती है। योगी व तपस्वी भी इस समय विशेष रूप से साधना में लीन रहते हैं। 
  • रात में जल्दी सोएं। रोजाना लगभग 6 घंटे की गहरी नींद लेने से मस्तिष्क (Brain) की कोशिकाएं रिलेक्स हो जाती हैं तथा पुनः कार्य करने के लिए तैयार रहती हैं।
  • तनावमुक्त रहें। ऐसा पाया गया है कि जो व्यक्ति तनावग्रस्त रहते हैं, उनकी एकाग्रता व ग्राह्य शक्ति कम हो जाता है। तनाव से कई ऐसे हार्मोंस निकलते हैं, जो मस्तिष्क (Brain) की क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करते हैं। 
  • रोजाना सुबह की सैर करें। 30 मिनट तक लगातार सैर करने से मस्तिष्क (Brain) का रक्त संचार बढ़ता है, विभिन्न हार्मोंस सही रूप में बनते व कार्य करते हैं तथा तनाव आदि से मुक्ति मिलती है।
  • ध्यान लगाएं। ध्यान की क्रिया से शरीर की सारी ऊर्जा एक ही स्थान पर केंद्रित की जाती है। इस क्रिया से मस्तिष्क (Brain) तरोताजा हो जाता है और याददाश्त भी बढ़ती है।
  • संतुलित भोजन लें। विभिन्न प्रकार के माइक्रो न्यूट्रिएंट्स, जैसे आयरन, जिंक, काॅपर आदि की यदि सही रूप में आपूर्ति हो, तो मस्तिष्क (Brain) के तंतु भलि प्रकार से संवेदनाओं का संवहन करते हैं। इसके लिए फलों व हरी सब्जियों का सेवन भरपूर मात्रा में करना चाहिए। भोजन में विटामिन 'सी' वाले पदार्थों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए, इससे  मस्तिष्क (Brain) की कोशिकाओं का क्षय नहीं होता और याददाश्त भी बढ़ती है। विटामिन 'सी' के मुख्य प्राकृतिक स्रोत हैं- आंवला, संतरा, नीबू आदि, अतः इनका प्रयोग लाभदायी होगा। इसके अलावा सीताफल या पेठे के बीजों का सेवन करना चाहिए, इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स  मस्तिष्क (Brain) के लिए लाभदायी होते हैं। विभिन्न प्रकार के नट्स, जैसे बादाम, अखरोट, मूंगफली आदि में पायी जाने वाली वसा से मस्तिष्क (Brain) की कोशिकाओं का पोषण होता है। हल्दी में पाया जाने वाला तत्व करक्यूमिन बहुत ही महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट्स से युक्त है, जो मस्तिष्क (Brain) को युवा व सेहतमंद बनाए रखते हैं।
  • विभिन्न जड़ी-बूटियों का वर्णन भी आयुर्वेद में किया गया है, जो मस्तिष्क (Brain) की कोशिकाओं को पोषण देती हैं व इसकी कार्यक्षमता को बढ़ाती हैं। इन जड़ी-बूटियों से निर्मित विभिन्न योग, जैसे ब्राह्मी चूर्ण, शंखपुष्पी चूर्ण, सारस्वतारिष्ट, ब्रह्म रसायन आदि डाॅक्टर की सलाह लेकर प्रयोग किए जा सकते हैं।

3. फेफड़े (Lungs)

फेफड़े (Lungs) शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य करने वाले अवयव हैं। इसके साथ ही फेफड़े (Lungs) शरीर में से कार्बनडाइऑक्साइड को बाहर फेंकते हैं। मानव शरीर में दो फेफड़े (Lungs) होते हैं, जोकि छाति में दोनों ओर स्थित रहते हैं। इनके स्वस्थ्य रहने से विभिन्न अन्य अंग भी सुचारू रूप से कार्य करते हैं। 
आजकल के मशीनी युग में फेफड़े (Lungs) सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। दूषित हवा, फैक्ट्री का धुआं, गाड़ियों से निकलने वाले रसायन आदि सभी श्वास के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं, जिससे फेफड़े (Lungs) संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ऐसे में फेफड़े (Lungs) की सेहत को लेकर विशेष रूप से सावधानी बरती जानी चाहिए। 
फेफड़े (Lungs) को तंदरुस्त व एक्टिव बनाए रखने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव इस प्रकार हैं-


  • रोजाना सुबह को उठकर पार्क में सैर करें, इससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और फेफड़े (Lungs) स्वस्थ रहते हैं।
  • प्राणायाम करें। प्राणायाम करने से फेफड़े (Lungs) की कार्यक्षमता बढ़ती है, फेफड़े (Lungs) मजबूत होते हैं व श्वास संबंधी बीमारियों से बचाव होता है। 
  • धूम्रपान न करें। सिगरेट, बीड़ी आदि में पाए जाने वाले रसायन फेफड़े (Lungs) में जमा होकर विभिन्न रोगों का कारण बनते हैं तथा दमा, खांसी व कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 
  • प्रदूषण से बचें। घर से बाहर जाते समय अपनी नाक व मुँह को रुमाल से ढ़क लें। ऐसा करना दूषित हवा से बचाता है।
  • प्रदूषण पर नियंत्रण रखें। पेड़-पौधे लगाएं व अन्य लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करें। आसपास पत्ते जलाने पर रोक लगाएं, कोयले आदि को आसपास न जलने दें। पैदल अधिक चलें और जब अनिवार्य हो, केवल तभी वाहनों का प्रयोग करें।
  • रोग-प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन करें। गिलोय, आंवला, मुलेठी आदि का सेवन करें। काली मिर्च के 2-3 दाने शहद के साथ रोजाना लेने से श्वासनली मजबूत होती है। इसके अलावा मुलेठी चूर्ण लेने से श्वसन संस्थान संबंधी रोगों से बचाव होता है। हल्दी जहाँ एक ओर एंटीबायोटिक है, वहीं इसमें मिलने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स फेफड़े (Lungs) को सेहतमंद बनाए रखने में सहायक होते हैं। रोजाना दूध के साथ हल्दी चूर्ण लेना खासतौर पर फायदेमंद है। तुलसी की पत्तियां सेवन करने से फेफड़े (Lungs) की क्रिया सुचारू होती है, जबकि अदरक का रस अधिक बलगम बनने से रोकता है। 
  • विभिन्न आयुर्वेदिक योग फेफड़े (Lungs) संबंधी समस्याओं में लाभदायी हैं। सितोपलादि चूर्ण या तालीशादी चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लेने से श्वास संबंधी तकलीफें दूर होती हैं। रोजाना च्यवनप्राश के सेवन से शारीरिक क्षमता बढ़ती है और फेफड़े (Lungs) मजबूत होते हैं। लक्ष्मीविलास रस, श्वासकुठार रस, कनकासव, श्वासकासचिंतामणि रस आदि आयुर्वेदिक दवाएं श्वास प्रणाली में होने वाले रोगों से मुक्ति दिलाती हैं, अतः डाॅक्टर की सलाह से इनका प्रयोग भी लाभदायक होगा।

4. गुर्दे (Kidney)

हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन करने के लिए गुर्दे (Kidney) लगातार कार्यरत रहते हैं। गुर्दे (Kidney) शरीर से मल का निष्कासन करने के साथ ही ब्लड प्रेशर पर भी नियन्त्रण रखती है व हड्डियों को मजबूत रखने में भी सहायक है। यदि गुर्दे (Kidney) ठीक से कार्य करती है, तो हार्ट व अन्य मसल्स सुचारु रूप से क्रियाएं करती हैं। किडनी संबंधी समस्या होने पर अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, जैसे ग्लोमेर्यूलो नेफ्राइटिस, क्राॅनिक रेनल फैल्योर, एक्यूट रेनल फैल्योर आदि। शरीर में यूरिया व क्रिएटिनिन की मात्रा का नियन्त्रण गुर्दे (Kidney) ही करती है। इसके अलावा विभिन्न इलेक्ट्रोलाइट्स, जैसे पोटेशियम, कैल्शियम आदि का वैलेंस भी गुर्दे (Kidney) की सेहत पर निर्भर है। अतः गुर्दे (Kidney) की सेहत को लेकर खासतौर पर सजग रहना चाहिए। गुर्दे (Kidney) को तंदरुस्त व एक्टिव बनाए रखने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव इस प्रकार हैं-

  • हल्का व आसानी से पच जाने वाला स्वच्छ व संतुलित भोजन लें और पर्याप्त मात्रा में पानी पिएँ। आर्टिफिशियल कलर व प्रिजर्वेटिव वाले पदार्थों से बचें। भोजन में नमक की मात्रा कम रखें तथा अधिक घी-तेल व मिर्च-मसाले वाले पदार्थों से भी परहेज बरतें।
  • अपने ब्लड प्रेशर व शुगर लेवल पर ध्यान दें। ऐसा पाया गया है कि जिन व्यक्तियों को शुगर व हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, उनकी गुर्दे (Kidney) की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इसलिए समय रहते ही हाई ब्लड प्रेशर व बढ़ी हुई शुगर को नियंत्रित करें, ताकि गुर्दे (Kidney) डिजीज से भी बच सकें।
  • रोजाना सैर करें। सैर करने से गुर्दे (Kidney) सहित पूरा शरीर तंदरुस्त बना रहता है।
  • डाॅक्टर की सलाह से ही कोई भी दवा लें। शरीर से दवाओं का निष्कासन भी गुर्दे (Kidney) ही करती है। कुछ दवाएं गुर्दे (Kidney) पर दुष्प्रभाव डालती हैं, इसलिए मनमर्जी से दवाएं न लें।
  • धूम्रपान से बचें। ऐसा देखा गया है कि धूम्रपान करने वाले लोगों में हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज व किडनी डिजीज अधिक मिलते हैं।
  • फल-सब्जियाँ अधिक लें तथा दालों व मांसाहार से बचें। मांस, मछली, सोयाबीन, दालें आदि में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। अतः इनका अधिक सेवन करने से किडनी पर अधिक दबाव पड़ता है। यही कारण है कि रोजाना गरिष्ठ पदार्थ व मांस-मछली खाने वाले लोगों में गुर्दे (Kidney) डिजीज का रिस्क बढ़ जाता है। ऐसे पदार्थों की बजाय घीया, तोरई, टिंडा, परवल, कद्दू आदि लेने से शारीरिक अवयव सुचारु ढंग से कार्य करते हैं।
  • गुर्दे (Kidney) को सेहतमंद बनाने वाली कई दवाओं का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है। पुनर्नवा चूर्ण, पुनर्नवासव, पुनर्नवारिष्ट आदि का प्रयोग गुर्दे (Kidney) संबंधी समस्याओं में लाभदायी है। तृणपंचमूल क्वाथ व गोखरू के बीज उपयोगी होते हैं तथा कासनी के बीजों का चूर्ण लेने से भी बहुत लाभ मिलता है। डाॅक्टर से सलाह लेकर इनका प्रयोग किया जा सकता है।

5. यकृत (Liver)

पाचन तंत्र का सबसे प्रमुख अवयव है यकृत (Liver)। यह हमारे शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यकृत (Liver) से निकलने वाले जूस भोजन व वसा को पचाते हैं। यदि यकृत (Liver) ठीक से कार्य नहीं करेगा, तो आहार रस का भलि प्रकार से पाचन नहीं होगा तथा शरीर में आम (टाॅक्सिंस) की उत्पत्ति होगी, जिससे विभिन्न रोग उत्पन्न होंगे। अतः यकृत (Liver) का तंदरुस्त रहना बहुत ही जरूरी है। यकृत (Liver) को तंदरुस्त व एक्टिव बनाए रखने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव इस प्रकार हैं-


  • हल्का, आसानी से पच जाने वाला व ताजा भोजन लें। गरिष्ठ, बासी व अधिक मसालेदार भोजन को पचाने के लिए पाचन तंत्र को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे यकृत (Liver) की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • व्यायाम करें। रोजाना अपनी क्षमता के अनुसार सैर व व्यायाम करने से पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करता है, यकृत (Liver) से निकलने वाले स्रावों की मात्रा बढ़ती है तथा भोजन ठीक से पचता है।
  • वजन पर नियन्त्रण रखें। ऐसा पाया गया है कि अधिक मोटे लोग यकृत (Liver) संबंधी समस्याओं से अधिक पीड़ित होते हैं, जिनमें से प्रमुख है फैटी यकृत (Liver)।
  • शराब-सिगरेट से बचें। शराब से यकृत (Liver) की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे विभिन्न भयंकर रोग उत्पन्न होते हैं।
  • बिना डाॅक्टर की देख-रेख के कोई भी दवा न लें। दरअसल विभिन्न दवाएं यकृत (Liver) से ही मेटाबोलाइज होती हैं, अतः इनका दुष्प्रभाव यकृत (Liver) पर पड़ सकता है।
  • यकृत (Liver) को इंफेक्शन से बचाने के लिए साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। भोजन के पहले व शौच से आने के बाद साबुन, हैंडवाश आदि से हाथ जरूर धोएँ। अच्छी क्वालिटी के व ढ़के हुए पदार्थ ही खाएं-पिएं। बाजार में खुले में बिकने वाले अस्वच्छ खाद्य पदार्थों से बचें। फल-सब्जियाँ धोकर ही प्रयोग में लाएं। ऐसा करने से हेपाटाइटिस जैसे जटिल रोगों से बचाव होता है।
  • विषहरण (Detoxification) करें। यकृत (Liver) से विषाक्त पदार्थ (टाॅक्सिंस) निकालने की क्रिया को यकृत (Liver) का विषहरण (Detoxification) कहा जाता है। इसके लिए लौकी का जूस सेवन करें। गाजर व आंवले के रस के सेवन से यकृत (Liver) की कोशिकाएं स्वस्थ रहती हैं। सलाद के रूप में चुकंदर का सेवन करके यकृत (Liver) की क्रिया को बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा नट्स, जैसे बादाम, अखरोट आदि में पाया जाने वाला विटामिन 'ई' भी यकृत (Liver) को तंदरुस्त रखता है। अधिक मिर्च-मसाले, घी-तेल आदि का प्रयोग न करें।
  • आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों को अपनाएं। कुटकी, भूम्यामलकी, शरपुंखा आदि जड़ी-बूटियाँ यकृत (Liver) डिजीज में लाभदायी हैं, अतः डाॅक्टर की सलाह से इनका प्रयोग भी किया जा सकता है।


धन्यवाद!

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