पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND), लिंग की चमड़ी उलट जाना, लिंग मुण्ड का न खुलना, (PHIMOSIS), जन्मजात निरुद्धता (CONGENITAL PHIMOSIS)

आयुर्वेदिक उपचार, Ghar Ka Vaidh, Blood Pressure, Asthma, Diabetes, Piliya, Acidity, Gurde Ki Pathri, Dandruff, Yon Rog, Back Pain, Birth Control, Motiya Bind, Gathiya, Dadi Nani Ke Nuskhe, Gharelu Upchar, Gharelu Nuskhe, Beauty Tips, Health Tips, Yoga, Recipes, History, Healthy Diet etc.
रोग परिचय, लक्षण एवं कारण - स्वप्न दोष (Night fall or Night discharge) में नींद में रोगी को स्त्री का स्वप्न आता है, रोगी नींद में ही (स्वप्न में) उससे सम्भोग करता है, फल-स्वरूप वीर्यपात हो जाता है और कपड़े गन्दे हो जाते हैं। इस प्रकार बार-बार होने लग जाता है तो यह रोग समझा जाने लगता है। यदि स्वप्न दोष महीने में 1-2 बार कुंवारे मनुष्य को हो जाये और ऐसा होने से वह कोई शारीरिक कमजोरी महसूस न करे तो स्वप्न दोष को रोग नहीं समझा जाता है। अत्यधिक स्वप्न दोष होने पर शरीर का कमजोर होना, चेहरे की रौनक एवं सुन्दरता का नाश होना, शरीर में अनेकों रोग रहना, मस्तिष्कीय कमजोरी, आँखों का धंस जाना, दृष्टि कमजोर होना, कायरता, सिर में दर्द रहना, अल्प परिश्रम से ही थकावट हो जाना, सिर में भारीपन, कब्ज बनी रहना, शीघ्रपतन, मूत्र के साथ वीर्य जाना, खाली बैठने पर ऊँघने लगना, शरीर टूटना, कमर-दर्द, स्मरण शक्ति का अभाव, वीर्य का पतला पड़ जाना, आदि इस रोग के प्रधान लक्षण हुआ करते हैं।
बुरे विचार, अति मैथुन, हस्त मैथुन, गुदा मैथुन, कब्ज, बदहजमी, चित्त सोना, अविवाहित रहना, वृक्कों की गर्मी, भोजनोपरान्त तुरन्त सो जाना, पेट के कीड़े, प्रोस्टेट ग्लैंड की खराश, सुपारी का लम्बा होना, मूत्रमार्ग का प्रदाह, काम इच्छा का बढ़ जाना, उत्तेजक वस्तुओं का अधिक प्रयोग, स्तम्भन-शक्ति की कमी, वीर्य की थैली की ऐंठन, सम्भोग के विचार में लीन रहना, अश्लील कहानियों, पुस्तकों आदि का पाठन, स्त्रियों के नग्न चित्रों को देखना, वीर्य की अधिकता, वीर्य की गर्मी, शारीरिक कमजोरी, मूत्राशय की खराश, सुजाक, नशीली वस्तुओं, शराब, भांग, गांजा, तम्बाकू आदि का अधिक सेवन, गर्म मसाले युक्त भोजन तथा खट्टे पदार्थों का अति सेवन, आदि कारणों से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। मानसिक कार्य की अधिकता, अत्यधिक चिंता आदि भी इस रोग को उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।
सुबह-शाम टहलना, उत्तेजना न देने वाली वस्तुओं का खाना-पीना, अच्छी संगति, अच्छी बातें करना, धार्मिक ग्रन्थों का पाठन, मन को प्रसन्न रखना, पेशाब करने के बाद जननेन्द्रियों का धो डालना, नित्य स्नान, सादा जीवन एवं उच्च विचार की कहावत को प्राथमिकता देनी चाहिए।
उत्तेजक पदार्थों का खान-पान, अश्लील गीत संगीत एवं नृत्यादि का आनन्द, एकान्त में रहना, हस्त मैथुन आदि कुटेवों का पूर्णरूपेण त्याग कर देना चाहिए। रोगी अपना ध्यान बार-बार अपने लिंग की ओर न ले जाये और न ही किसी स्त्री के रूप एवं आकृति को अपने मन में ही लाये, किसी भी स्त्री को स्पर्श या रूप दर्शन का प्रयास भी नहीं करे, यदि किसी स्त्री से बात-चीत करना ही आवश्यक हो तो उसके पैरों की ओर ही दृष्टि करके बात-चीत करे, ऊपर पेडू वक्षस्थल अथवा चेहरे आदि की ओर टकटकी बाँधकर न निहारें, रोगी रात्रि में गर्म दुग्धपान करके न सोवें, स्वप्नदोष के रोगी को प्रात:काल ही ठन्डा करके उबाला हुआ दूध पीना चाहिए। कब्ज बिल्कुल नहीं होने दें। सोते समय मूत्रादि करके सोवें तथा रात्रि में जिस समय आँख खुल जाये तो तुरन्त ही मूत्रादि करना चाहिए, नहीं तो मूत्राशय मूत्र से भरा रहने पर उसका दबाव शुक्राणुओं पर पड़ता है और वीर्य तुरन्त स्खलित हो जाता है।
कुछ रोगियों को लगभग एक निश्चित समय (प्रात:काल लगभग 4 से 5 बजे के मध्य) स्वप्नदोष हो जाया करता है, ऐसे रोगियों को वीर्यपात (स्वप्नदोष) के समय से पूर्व ही उठकर नित्यकर्म शौचादि से निपट कर प्रात:कालीन भ्रमण पर चले जाना चाहिए, इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। तंग अन्डरबियर, लंगोट, अन्डरपेन्ट पहन कर रोगी नहीं सोना चाहिए, क्योंकि नींद में कड़े वस्त्र की शिश्न पर रगड़ या दबाव से भी वीर्य स्खलन हो जाता है। मुलायम स्पंज सदृश गुदगुदे कोमल और मोटे गद्दे पर रोगी को नहीं सोना चाहिए, इससे भी स्वप्नदोष की सम्भावना रहती है। रोगी चित्त न सोवे, बल्कि विशेष रूप से बांयी करवट लेकर सोना चाहिए इससे भोजन शीघ्र व भलि भाँति पच जाता है।
Comments
Post a Comment