पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND), लिंग की चमड़ी उलट जाना, लिंग मुण्ड का न खुलना, (PHIMOSIS), जन्मजात निरुद्धता (CONGENITAL PHIMOSIS)

आयुर्वेदिक उपचार, Ghar Ka Vaidh, Blood Pressure, Asthma, Diabetes, Piliya, Acidity, Gurde Ki Pathri, Dandruff, Yon Rog, Back Pain, Birth Control, Motiya Bind, Gathiya, Dadi Nani Ke Nuskhe, Gharelu Upchar, Gharelu Nuskhe, Beauty Tips, Health Tips, Yoga, Recipes, History, Healthy Diet etc.
कोई भी हकीम या चिकित्सक, स्त्री वा पुरुषों के गुप्त रोगों के उपचार में तब तक सफल नहीं हो सकता है, जब तक कि वह इस चिकित्सा क्रम की ठीक से जानकारी न रखता हो, ठीक जानकारी के अभाव में अच्छी से अच्छी चिकित्सा एवं औषधियां भी रोगी को सेवन कराने से, रोगी को कोई लाभ नहीं होता यदि रोगी में वीर्यनाश, अधिक मैथुन या किसी और रोग के कारण 'काम इच्छा' बढ़ चुकी है और वह इच्छा अपूर्ण है, तब आप उसके आमाशय और यकृत का उपचार करें और इन अंगों को शक्तिशाली बनाने के लिए औषधियों का सेवन कराया जाए तथा इसके साथ ही उसकी अधूरी 'कामेच्छा' की भी चिकित्सा की जाए, रोगी निश्चित रूप से ठीक हो जाएगा।
जब रोगी को मूत्र और पाखाना से पूर्व या बाद में वीर्य निकलने के रोग, स्व्प्न दोष, और शीघ्रपतन आदि में आराम मिल जाए तो इन रोगो के दूर होने के बाद ही उसको मर्दाना ताकत और नपुंसकता की दवाएं दी जानी चाहिए। अगर इस 'चिकित्सा क्रम' के विपरीत चिकित्सा की जाएगी तो गुप्त रोगों की चिकित्सा करने में सफल नहीं होऺगे और रोगी का रोग पूर्ण रूप से दूर नहीं होगा।
उदाहरण के लिए वैद्य पास यदि कोई ऐसा रोगी आता है कि जिसने हस्त मैथुन और दूसरी कु-चेष्टाओं से अपने लिंग और मर्दाना अंगों खराबियां उत्पन्न कर ली हैं और वह मर्दाना कमजोरी, नपुंसकता की चिकित्सा कराना चाहता है तो उसे चाहिए बिना उचित चिकित्सा क्रम को सोचे-समझे रोगी को वीर्य-बर्धक और वीर्य उत्तेजक औषधियों का सेवन न कराएं। ऐसी चिकित्सा से रोगी को कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि ऐसे रोगी की जननेन्द्रियां हस्त मैथुन और कु-चेष्टाओं के कारण ढीली और शीघ्र ही उसमें उत्तेजना एक्शन उत्पन्न हो जानेवाली हो चुकी हैं, इसलिए वीर्य बर्धक दवाओं से उसके पाचन अंगों में संम्वेदनाओं को और अधिक बढ़ायेंगी, परिणाम स्वरुप मन में काम-वासना के विचार उठते ही उत्तेजित होकर शीघ्र ही वीर्य निकल जाता है, जिससे रोगी को लाभ के स्थान पर और उल्टी हानि होती है।
रोग परिचय, लक्षण एवं कारण- पुरुष लिंग के चर्म की संज्ञावाही नाड़ियों और स्नायु तन्तुओं में एक असाधारण संज्ञा उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण लिंग में बहुत अधिक रक्त संचार होने लगता है, परिणाम स्वरुप लिंग में बार-बार उत्तेजना होकर मैथुन इच्छा बढ़ जाती है, कभी-कभी किसी-किसी रोगी के लिंग में इतनी संज्ञा बढ़ जाती है कि कपड़े की रगड़ और हाथ से छू जाने पर भी रोगी मैथुन आनन्द प्राप्त करने लग जाता है।
रोगी इस स्थिति को काम शक्ति और मर्दाना ताकत समझ बैठता है, जो कि उसकी भयंकर भूल होती है। हर समय काम वासना और सुन्दर स्त्रिओं के रूप, गन्दे विचार, गन्दे और प्रेम भरे (अश्लील) उपन्यासों का पाठन अथवा ब्लू फिल्में स्त्रिओं के नंगें चित्रों से युक्त एलवम आदि को बार-बार देखना, कुसंगति, हस्तमैथुन, गुदा-सम्भोग, अति मैथुन, वेश्यागमन, आदि इस रोग के मुख्य कारण हैं।
इस रोग में साधारण काम विचार से ही लिंग में उत्तेजना, थोड़ी सी रगड़, कोमल स्पर्श, सुन्दर स्त्री का दर्शन या विचार आते ही तुरंत अपूर्ण उत्तेजना होने लग जाती है। इस प्रकार की उत्तेजना बार-बार होने लग जाती है और उत्तेजना के साथ लिंग से वीर्य तथा दूसरे प्रकार के तरल निकल जाते हैं। कई बार वीर्यपात सामान्य से अधिक मात्रा में हो जाता है।
वीर्य पानी की भांति पतला और कमजोर, स्त्री के पास जाते ही वीर्य शीघ्र ही या मैथुन से पूर्व ही निकल जाना, स्वप्नदोष की अधिकता, उपद्रवस्वरूप वीर्य-प्रमेह आदि रोगों का हो जाना, समस्त शरीर कमजोर हो जाना, चेहरा पीला तथा पिचका हुआ, सरदर्द, सिर चकराना, दिल और दिमाग कमजोर होना, हताश जीवन, आलस्य, उत्साहीनता, वहम (सन्देह) हाथ-पांव की हथेलियों एवं तलुवों में जलन, जठाराग्नि की कमजोरी, पीठ पर चींटियां सी रेंगना तथा मूत्र प्रणाली में प्राय: जलन आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।
Comments
Post a Comment