चुनिंदा फल-सब्जियों से लाएं काया में निखार
प्रकृति की ओर से हमें कई ऐसी अनमोल फल-सब्जियां मिली हुई हैं, जो किसी वरदान से कम नहीं हैं। रुचि, मौसम आदि का ख्याल रखते हुए इनका भरपूर मात्रा में सेवन करने वाले को अलग से टाॅनिक आदि लेने की जरूरत नहीं रह जाती। फल-सब्जियों से प्रायः वे सभी विटामिंस, मिनिरल्स आदि मिल जाते हैं, जो विभिन्न रोग-विकारों से निजात दिलाते हैं, चुस्ती-स्फूर्ति बढ़ाते हैं, शरीर को हमेशा तंदरुस्त बनाए रखते हैं तथा आयु में भी बढ़ोतरी करते हैं।
एक बार महात्मा गाँधी रवीन्द्रनाथ टैगोर के यहां ठहरे हुए थे। शाम का समय था। दोनों मित्रों का निर्णय हुआ कि घूमने के लिए चला जाए। टैगोर जी ने कहा कि जरा अंदर से आता हूँ। महात्मा गाँधी उनके आने का इंतजार करते रहे, आधा घंटा से अधिक समय गुजर गया। महात्मा गाँधी बरामदे में चहलकदमी करने लगे, तभी खिड़की से उन्होंने देखा कि टैगोर जी कंघी से अच्छी तरह बाल व दाढ़ी को संवारने में व्यस्त हैं। जब वे बाहर आये, तो महात्मा गाँधी ने मित्रता भरे लहजे में कहा-"इस बुढ़ापे में भी सजने-संवरने की अच्छी आदत है।"
टैगोर जी ने मुस्कुराते हुए इसका बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर दिया-"सजने संवरने की आदत तो नहीं है, लेकिन मेरी ओर देखने से किसी की आंखों में दर्द नहीं हो, ऐसा प्रयास तो करना ही चाहिए।" यह उत्तर सुनकर महात्मा गाँधी मुस्कराने लगे।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम स्वस्थ रहें, सुंदर दिखें और शरीर सुडौल बना रहे-ऐसी कामना प्रायः सभी को होती है। स्त्री हो या पुरुष, बच्चा हो या बुजुर्ग, यहां तक कि साधु-महात्मा भी इस कामना से वंचित नहीं हैं। सौंदर्य आदि को लेकर सबमें आकर्षण देखने को मिलता है।
लेकिन यह कामना तभी पूरी हो सकती है, जब हम अंदर से भी स्वस्थ हों, शरीर के अंदर एक-एक कोशिका रोगमुक्त हो। इसके लिए पोषक आहार के रूप में फल-सब्जियों का प्रयोग सबसे ज्यादा लाभदायी है। प्रकृति में अनेक ऐसी फल-सब्जियां हैं, जो भरपूर पोषण देकर शरीर को हमेशा सुंदर व निरोग बनाए रखती हैं।
प्रमुख फल
मौसमी (Mosambi)
मौसमी रोगी और निरोग दोनों के लिए बेहद फायदेमंद फल है। मौसमी सिर्फ शरीर की कमजोरी ही दूर नहीं करती, यह रोगों से लड़ने की क्षमता भी उत्पन्न करती है तथा विभिन्न रोगों से मुक्ति दिलाने में भी पूर्ण सक्षम है। लेकिन ध्यान रहे, अधिक मूत्र आने या अधिक दस्त आने की स्थिति में इसे नहीं लेना चाहिए। इस प्रकार गुर्दे के रोगी को भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• यदि बार-बार जुकाम हो जाता हो, तो कुछ दिनों तक रोजाना मौसमी का जूस पिएं। यदि जूस को गुनगुना करके 5 बूंद अदरक का रस मिलाकर लिया जाए, तो और भी बेहतर होगा।
• रोजाना मौसमी का जूस पीने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम हो जाती है, जिससे हार्ट डिजीज से बचाव होता है ।
• गर्भवती को मौसमी का जूस देने से कैल्शियम की पूर्ति होती है।
• मौसमी का जूस एक उत्तम रक्तशोधक है, अतः यह चर्म रोग में भी लाभदायी है।
• मौसमी का जूस क्षारीय प्रकृति का होता है, अतः यह रक्त की अम्लता को दूर करता है।
अनार (Pomegranate)
अनार एक उत्तम रसीला फल है। किसी भी रोग से ग्रस्त व्यक्ति इसका प्रयोग कर सकते हैं।
• रोजाना अनार का जूस सेवन करने से रक्त संचार ठीक हो जाता है और शक्ति-स्फूर्ति बढ़ती है।
• यक्ष्मा (टी.बी.) रोगी के लिए अनार का प्रयोग बेहद फायदेमंद है।
• मूत्रावरोध में 1 गिलास अनार के जूस में 2-3 पिसी हुई इलायची घोलकर पीने से लाभ मिलता है।
• अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि रोजाना अनार का जूस सेवन कराया जाए, तो कैंसर का क्षेत्रीय विस्तार और संक्रमण कंट्रोल हो जाता है।
• अनार के पत्तों के काढ़े में समभाग गरम दूध मिलाकर पीने से मानसिक व शारीरिक थकान दूर होती है और अच्छी नींद आने लगती है।
• अनार के पत्तों के काढ़े से बार-बार कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
• अनार के पत्तों को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर खुजली से प्रभावित भाग पर मलने से लाभ मिलता है।
अंगूर (Grapes)
किसी भी फल में मिठास का कारण उसमें उपस्थित फ्रक्टोज होता है। फ्रक्टोज फलों में पायी जाने वाली एक प्रकार की शर्करा है, जो अंगूर में पर्याप्त मात्रा में होती है। अंगूर हरे और काले रंग के पाए जाते हैं। अंगूर को ही सूखने पर किशमिश और मुनक्का के नाम से जाना जाता है।
अंगूर शरीर के लिए विशेष रूप से हितकारी है। जैसे दूध से शरीर को सभी आवश्यक तत्व प्राप्त हो जाते हैं, उसी तरह अंगूर से भी शरीर को सारे तत्व मिल जाते हैं। अतः इसे पूर्ण पौष्टिक आहार माना जा सकता है। दूध के अभाव में अंगूर लेकर इसकी आवश्यकता पूरी की जा सकती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि अंगूर एक पूर्ण पौष्टिक फल है। समुचित मात्रा में योग एवं अनुपान भेद से इसे जुकाम, वात विकार, हार्ट डिजीज, कैंसर, ज्वर, खांसी-कफ, रक्तस्राव, कब्ज, गुर्दे के रोग आदि में सफलतापूर्वक प्रयोग में लाया जाता है। प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि द्राक्षारिष्ट और द्राक्षासव में मूल अंश अंगूर का ही होता है।
आंवला (Gooseberry)
सेवन हेतु आंवला वही अच्छा है, जो आकार में बड़ा हो, अंदर रेशे नहीं हों, किसी प्रकार का दाग नहीं हो और हल्की-सी लालिमा लिए हुए हो। सामान्यतया नवम्बर से मार्च तक यह भरपूर मात्रा में उपलब्ध होता है।
आंवले में विटामिन ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो कि आंवले की शुष्क अवस्था में भी नष्ट नहीं होता। यह शरीर को सदा स्वस्थ रखने वाला, बुढ़ापा दूर रखने वाला व बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने वाला एक उत्तम टाॅनिक व रसायन है।
आंवला बालक, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी के लिए और सभी रोगों में पूर्ण लाभदायी है। यह स्वास्थ्य-सौंदर्यवर्धक फल है। इसे कच्चा भी खाया जाता है और अचार, चटनी, मुरब्बा व चूर्ण (समभाग मिश्री मिलाकर) बनाकर भी ले सकते हैं।
पपीता (Papaya)
पपीता पाचन संस्थान को सुधारने व पाचन क्षमता बढ़ाने के लिए बेहद उपयोगी फल है। इसका सेवन करने से कब्ज दूर होकर खुलकर भूख लगने लगती है। इसे कच्चे और पके दोनों ही रूपों में प्रयोग में लाया जाता है।
पपीते में प्रोटीन, खनिज-लवण, विटामिन ‘ए’ आदि पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं, यहां तक कि सेब, अंगूर, लीची, अनार आदि में इन पौष्टिक तत्वों की जो मात्रा पायी जाती है, उससे 20 गुणा अधिक पपीता में पायी जाती है। इस प्रकार की सभी उम्र वालों के लिए और सभी अवस्थाओं में इसका सेवन लाभदायी है।
इसके अलावा भी कई ऐसे फल हैं, जिन्हें अपनी रुचि और मौसम के अनुसार प्रयोग में लाया जा सकता है, जैसे केला, आम, लीची, जामुन, अमरूद, तरबूज, खरबूजा आदि।
प्रमुख सब्जियां (Major vegetables)
सब्जियों के बिना स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हरी सब्जियों में विभिन्न पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। अतः इन्हें अपने भोजन में भरपूर मात्रा में शामिल किया जाना चाहिए। घीया, पालक, बथुआ, मेथी, करेला, तोरई, टमाटर, फूलगोभी, बंदगोभी, परवल, गाजर, मूली, भिंडी, सेम आदि कुछ प्रमुख सब्जियां हैं, जिन्हें मौसम के अनुसार प्रयोग में लाने से शरीर स्वस्थ बना रहता है, रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और सौंदर्य-आकर्षण में भी बढ़ोतरी होती है।
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कायाकल्प करने वाले चुनिंदा आयुर्वेदिक टाॅनिक...
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