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Showing posts from November, 2020

पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND), लिंग की चमड़ी उलट जाना, लिंग मुण्ड का न खुलना, (PHIMOSIS), जन्मजात निरुद्धता (CONGENITAL PHIMOSIS)

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  पौरुष ग्रन्थि का बढ़ जाना (ENLARGEMENT OF PROSTATE GLAND) रोग परिचय कारण एवं लक्षण:- इसमें पौरुषग्रन्थि बगैर सूजन के बढ़ जाती है। यह रोग बिना कीटाणुओं के आक्रमण से हो जाता है। यही कारण है कि इसमें दर्द और ज्वर आदि नहीं होता है। प्राय: यह रोग 50 वर्ष की आयु के बाद ही होता है। प्रारम्भ में मूत्र में कुछ कठिनाई और रुकावट सी आती है, बाद में मूत्र बिना कष्ट के, सामान्य रूप से आने लगता है। रोग बढ़ जाने पर मूत्र बार-बार आता है, मूत्राशय मूत्र सें पूरा खाली नहीं होता, कुछ न कुछ मूत्र मूत्राशय में रुका ही रह जाता है। मूत्र करते समय रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे कोई चीज मूत्र को बाहर निकलने से रोक रही है। इस रोग के मुख्य कारण अत्यधिक मैथुन तथा अत्यधिक सुरापान है। यह रोग प्रायः तर मौसम (तर जलवायु) में रहने वालों को अधिक हुआ करता है। चिकित्सा:- इस रोग में खट्टे, ठन्डे और तर भोजनों और तरकारियों तथा देर से पचने वाले भोजनों यथा-दही, मट्टा, गोभी, बैंगन, अरबी (घुइयाँ) आदि का पूर्णतयः निषेध है। रोगी को मैथुन न करने की हिदायत दें। 'सोये के तैल' की मालिश करें। यदि औषधियों से रोगी ठीक न हो

स्वप्न दोष (NOCTURNAL EMISSTION) का देशी जड़ी बूटियों व आयुर्वेदिक पेटेन्ट योग द्वारा उपचार।

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 स्वप्न दोष (NOCTURNAL EMISSTION)  रोग परिचय, लक्षण एवं कारण - स्वप्न दोष (Night fall or Night discharge) में नींद में रोगी को स्त्री का स्वप्न आता है, रोगी नींद में ही (स्वप्न में) उससे सम्भोग करता है, फल-स्वरूप वीर्यपात हो जाता है और कपड़े गन्दे हो जाते हैं। इस प्रकार बार-बार होने लग जाता है तो यह रोग समझा जाने लगता है। यदि स्वप्न दोष महीने में 1-2 बार कुंवारे मनुष्य को हो जाये और ऐसा होने से वह कोई शारीरिक कमजोरी महसूस न करे तो स्वप्न दोष को रोग नहीं समझा जाता है। अत्यधिक स्वप्न दोष होने पर शरीर का कमजोर होना, चेहरे की रौनक एवं सुन्दरता का नाश होना, शरीर में अनेकों रोग रहना, मस्तिष्कीय कमजोरी, आँखों का धंस जाना, दृष्टि कमजोर होना, कायरता, सिर में दर्द रहना, अल्प परिश्रम से ही थकावट हो जाना, सिर में भारीपन, कब्ज बनी रहना, शीघ्रपतन, मूत्र के साथ वीर्य जाना, खाली बैठने पर ऊँघने लगना, शरीर टूटना, कमर-दर्द, स्मरण शक्ति का अभाव, वीर्य का पतला पड़ जाना, आदि इस रोग के प्रधान लक्षण हुआ करते हैं। बुरे विचार, अति मैथुन, हस्त मैथुन, गुदा मैथुन, कब्ज, बदहजमी, चित्त सोना, अविवाहित रहना, वृक्को